विकलांग श्रद्धा का दौर
हिंदी में वयंगय साहितय लिखने वाले बिरले ही हुए होंगे, हरिशंकर परसाई जी ऐसे लेखकों के लिए मिसाल हैं, और केवल मिसाल ही नहीं, शाशवत वयंगय लिखने वाले एक ऐसे सतमभ हैं जो निरंतर ही परेरणा का सतोतर हो हरिशंकर परसाई को अपनी इस लघु कथा संगरह, विकलांग शरधदा का दौर के लिए साहितय अकादमी से पुरसकार मिला यदि वयंगय समझ आये तो इन लघु कथाओं में चोट बहुत सटीक है न आये, तो भी ये रोजमररा की बेहद मनोरंजक कहानियां है, जो हरिशंकर जी के आस पास के समाज पर परकाश डालती है गौर से देखेंगे तो भारत का समाज विगत 30 सालों
Satirical short stories by famous Hindi author. Biographical anecdotes of his life during the period his leg got fractured. Takes on the various notions of people and society. Good comic read
Harishankar Parsai was one of the greatest hindi satire writer. Despite holding a MA degree in English, he never wrote in this language. Started his career as a teacher, he later quit it to become a full time writer and started a literature magazine "Vasudha"(it was later closed because of financial difficulties). He was famous for his blunt and pinching style of writing which included allegorical
India got its independence in 1947, Congress kept ruling democratically till 1975 and then emergency was imposed, a lot of undemocratic practices and procedures were adopted in the name of "progress". Progress and economic development are two ideals which have been instrumental in pushing more people towards economic and personal decline. Jai Prakash Narayan started the "doosri aazadi" aandolan to uproot Congress, general elections took place in 1977 which Congress party lost. Janata Party came
परसाई जी के दवारा रचित कृतियों में विकलांग शरदधा का दौर हमारे मानसपटल पे एक अलग ही छाप छोडता है लेखक महोदय ने वयंगयों के दवारा आज के जगत की वासतविकता को बहुत ही सहजता के साथ पिरोया एवं परसतुत किया है कुछ संदरभ तो छोटे होते हुए भी वासतविकता का ऐसा सजीव चितरण करते है की हमारी सोच पे एक अमिट छाप छोड देते है लेखक महोदय ने जिस तरीके से सामाजिक ततवों का वयाखयान वयंगयों के माधयम से किया है वो सचमुच काबिले तारीफ हैं
विकलांग शरदधा का दौर हरिशंकर परसाई दवारा उस समय लिखा गया था जब भारत राजनीतिक रूप से बहुत उथल-पुथल झेल रहा था और वह खुद शारीरिक रूप से असवसथ थे| यह दौर 75 से 78 तक का ऐसा वरणन है जिसमें हर एक जगह राजनीति और सामाजिक पृषठभूमि मिल जाएगी साथ ही साथ शारीरिक रूप से असवसथ लेखक कैसे अपनी असवसथता को वयंग में तबदील करता हैं यह भी देखने मिलेगा| इस पुसतक के लिए परसाई जी को साहितय अकादमी पुरसकार मिला है|इस पुसतक की हर दूसरी या तीसरी लाइन एक वयंग है जो बहुत बार आपको हंसने के लिए तो बहुत बार सोचने के लिए मजबूर
Harishankar Parsai
Paperback | Pages: 148 pages Rating: 4.24 | 142 Users | 11 Reviews
Mention Books As विकलांग श्रद्धा का दौर
Original Title: | विकलांग श्रद्धा का दौर ISBN13 9788126701179 |
Edition Language: | Hindi |
Literary Awards: | Sahitya Akademi Award for Hindi (1982) |
Representaion In Pursuance Of Books विकलांग श्रद्धा का दौर
श्रद्धा ग्रहण करने की भी एक विधि होती है| मुझसे सहज ढंग से अभी श्रद्धा ग्रहण नहीं होती| अटपटा जाता हूँ| अभी 'पार्ट टाइम' श्रधेय ही हूँ| कल दो आदमी आये| वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छूने को हाथ बढाया| हम दोनों ही नौसिखुए| उसे चरण चूने का अभ्यास नहीं था, मुझे छुआने का| जैसा भी बना उसने चरण छु लिए| पर दूसरा आदमी दुविधा में था| वह तय नहीं कर प् रहा था कि मेरे चरण छूए य नहीं| मैं भिखारी की तरह उसे देख रहा था| वह थोडा-सा झुका| मेरी आशा उठी| पर वह फिर सीधा हो गया| मैं बुझ गया| उसने फिर जी कदा करके कोशिश की| थोडा झुका| मेरे पाँवो में फडकन उठी| फिर वह असफल रहा| वह नमस्ते करके ही चला गया| उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार, कैसे टूच्चो के चरण छूते हो|Itemize Out Of Books विकलांग श्रद्धा का दौर
Title | : | विकलांग श्रद्धा का दौर |
Author | : | Harishankar Parsai |
Book Format | : | Paperback |
Book Edition | : | Anniversary Edition |
Pages | : | Pages: 148 pages |
Published | : | 2015 by राजकमल प्रकाशन (first published 1981) |
Categories | : | Writing. Essays. Short Stories |
Rating Out Of Books विकलांग श्रद्धा का दौर
Ratings: 4.24 From 142 Users | 11 ReviewsWeigh Up Out Of Books विकलांग श्रद्धा का दौर
Reading this book made me realise the courage satirists and journalists had in the 70s. The way Parsaiji has trashed Morarji Desai will just never happen today. Untalented hacks abound who bend over backwards to please those currently in power. The very act of questioning them with facts is deemed anti-national. It was very aptly said by Oscar Wilde that patriotism is the virtue of the vicious.हिंदी में वयंगय साहितय लिखने वाले बिरले ही हुए होंगे, हरिशंकर परसाई जी ऐसे लेखकों के लिए मिसाल हैं, और केवल मिसाल ही नहीं, शाशवत वयंगय लिखने वाले एक ऐसे सतमभ हैं जो निरंतर ही परेरणा का सतोतर हो हरिशंकर परसाई को अपनी इस लघु कथा संगरह, विकलांग शरधदा का दौर के लिए साहितय अकादमी से पुरसकार मिला यदि वयंगय समझ आये तो इन लघु कथाओं में चोट बहुत सटीक है न आये, तो भी ये रोजमररा की बेहद मनोरंजक कहानियां है, जो हरिशंकर जी के आस पास के समाज पर परकाश डालती है गौर से देखेंगे तो भारत का समाज विगत 30 सालों
Satirical short stories by famous Hindi author. Biographical anecdotes of his life during the period his leg got fractured. Takes on the various notions of people and society. Good comic read
Harishankar Parsai was one of the greatest hindi satire writer. Despite holding a MA degree in English, he never wrote in this language. Started his career as a teacher, he later quit it to become a full time writer and started a literature magazine "Vasudha"(it was later closed because of financial difficulties). He was famous for his blunt and pinching style of writing which included allegorical
India got its independence in 1947, Congress kept ruling democratically till 1975 and then emergency was imposed, a lot of undemocratic practices and procedures were adopted in the name of "progress". Progress and economic development are two ideals which have been instrumental in pushing more people towards economic and personal decline. Jai Prakash Narayan started the "doosri aazadi" aandolan to uproot Congress, general elections took place in 1977 which Congress party lost. Janata Party came
परसाई जी के दवारा रचित कृतियों में विकलांग शरदधा का दौर हमारे मानसपटल पे एक अलग ही छाप छोडता है लेखक महोदय ने वयंगयों के दवारा आज के जगत की वासतविकता को बहुत ही सहजता के साथ पिरोया एवं परसतुत किया है कुछ संदरभ तो छोटे होते हुए भी वासतविकता का ऐसा सजीव चितरण करते है की हमारी सोच पे एक अमिट छाप छोड देते है लेखक महोदय ने जिस तरीके से सामाजिक ततवों का वयाखयान वयंगयों के माधयम से किया है वो सचमुच काबिले तारीफ हैं
विकलांग शरदधा का दौर हरिशंकर परसाई दवारा उस समय लिखा गया था जब भारत राजनीतिक रूप से बहुत उथल-पुथल झेल रहा था और वह खुद शारीरिक रूप से असवसथ थे| यह दौर 75 से 78 तक का ऐसा वरणन है जिसमें हर एक जगह राजनीति और सामाजिक पृषठभूमि मिल जाएगी साथ ही साथ शारीरिक रूप से असवसथ लेखक कैसे अपनी असवसथता को वयंग में तबदील करता हैं यह भी देखने मिलेगा| इस पुसतक के लिए परसाई जी को साहितय अकादमी पुरसकार मिला है|इस पुसतक की हर दूसरी या तीसरी लाइन एक वयंग है जो बहुत बार आपको हंसने के लिए तो बहुत बार सोचने के लिए मजबूर
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